Monday 31 August 2020

एक सिक्के के दो पहलू


स्त्रियों के विकास के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है! हम सभी प्रयासरत हैं -अपनी बेटियों को ऊँची से ऊँची शिक्षा दिला रहे हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बनें, अपने जीवन के फ़ैसले सोच-समझकर लें, भावी जीवन में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें! साथ ही अपने बेटों को भी सिखा रहे हैं कि वे लड़कियों/स्त्रियों की इज़्ज़त करें, उन्हें अपने से क़तई कमतर न आँकें, घर के कामों में बराबर से मदद करें! मगर विडंबना ये है कि स्त्री को आगे बढ़ने से रोकने वाली, अक्सर पहले एक स्त्री ही होती है, पुरुष तो बाद में आते हैं! सही मायनों में देखा जाये तो समाज में बदलाव अपने घर से ही शुरू होता है! 

नीचे दो लघुकथाएँ दी गई हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि एक अत्यंत सामान्य सी परिस्थिति में, कैसे स्त्री के विकास में अड़ंगा लगाया जा सकता है या बढ़ावा दिया जा सकता है -

1.

अस्तित्व

 महिला-दिवस का आयोजन था। हॉल महिलाओं सा खचाखच भरा हुआ था। फुसफुसाहट के मधुर स्वर बीच-बीच में गूँज उठते थे और पूरे माहौल में इत्र की मिली-जुली सुगंध घुली हुई थी। एक महिला स्टेज पर भाषण दे रही थी-"हम महिलायें अब घर में सजाने वाली वस्तु नहीं रह गयीं हैं। हमारा अपना एक अलग वजूद है, अपना ध्येय है, अपनी ज़रूरतें है … " हॉल में बैठी हुई कुछ महिलायें दूर बैठी महिलाओं से अभिवादन का आदान-प्रदान कर रहीं थीं , कुछ दूसरों के वस्त्रों का आंकलन कर रहीं थीं।  बीच-बीच में तालियाँ  भी बजा देतीं थीं। 

        इतने में श्रीमती शर्मा ने श्रीमती सिन्हा से कहा, "क्या हुआ मिसेज़ सिन्हा, आज आप आने में लेट हो गयीं ? सिन्हा साहब की तबियत अब कैसी है?" श्रीमती सिन्हा ने कुछ खीजे हुए स्वर में कहा, "अरे क्या बताऊँ मिसेज़ शर्मा! सिन्हा साहब की तबियत तो आज बेहतर है मगर ये आजकल की बहुओं के चोंचले! सुबह मैं तैयार हो ही रही थी कि देखा बहूरानी पहले ही से तैयार खड़ी हैं, आज उसकी अपने बॉस के साथ मीटिंग थी !"  श्रीमती शर्मा के आँखों में एक ख़ुराफ़ाती जिज्ञासा जाग उठी, चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए तुरंत पूछ बैठीं, "अच्छा! फिर…?”  "फिर ..." श्रीमती सिन्हा बोलीं, "मैनें भी कह दिया कि आज ऑफिस से छुट्टी ले लो, मुझे महिला-दिवस के ज़रूरी फंक्शन में जाना है।"

"फिर?" श्रीमती शर्मा की जिज्ञासा और भी बढ़ी हुई प्रतीत हो रही थी।

"फिर क्या! " श्रीमती सिन्हा रौब से बोलीं , "आखिर सास हूँ ! मेरा भी कुछ हक़ बनता है उसपर … " श्रीमती सिन्हा के चेहरे पर विजय के भाव थे। 

         स्टेज पर महिला का भाषण अंतिम चरण पर था, "अब पुरुष चाहे कुछ भी कर ले, हम महिलाओं को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता … "

-0-

2.

सामंजस्य 

 महिला-दिवस का आयोजन था। हॉल महिलाओं से खचाखच भरा हुआ था। फुसफुसाहट के मधुर स्वर बीच-बीच में गूँज उठते थे और पूरे माहौल में इत्र की मिली-जुली सुगंध घुली हुई थी। एक महिला स्टेज पर भाषण दे रही थी-"हम महिलायें अब घर में सजाने वाली वस्तु नहीं रह गयीं हैं। हमारा अपना एक अलग वजूद है, अपना ध्येय है, अपनी ज़रूरतें है … " हॉल में बैठी हुई कुछ महिलायें दूर बैठी महिलाओं से अभिवादन का आदान-प्रदान कर रहीं थीं , कुछ दूसरों के वस्त्रों का आकलन कर रहीं थीं।  बीच-बीच में तालियाँ  भी बजा देतीं थीं। 

        इतने में श्रीमती शर्मा ने श्रीमती सिन्हा से कहा, "क्या हुआ मिसेज़ सिन्हा, आज आप आने में लेट हो गयीं ? सिन्हा साहब की तबियत अब कैसी है?" श्रीमती सिन्हा ने हलके से मुस्कुरा कर कहा, "सिन्हा जी की तबियत तो अब पहले से बेहतर है। देर तो बहू के ऑफिस के कारण हुई। आज शीनू की अपने बॉस के साथ मीटिंग थी। " श्रीमती शर्मा के आँखों में एक ख़ुराफ़ाती जिज्ञासा जाग उठी, चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए तुरंत पूछ बैठीं, "अच्छा! फिर…?”  "फिर क्या! शीनू बेचारी संकोच में थी , परेशान हो रही थी कि क्या करे, कैसे मना करे अपने बॉस को! तो मैंने ही उससे कहा कि वह चिंता न करे ! अपनी मीटिंग ख़त्म करके आ जाए, उसके बाद मैं इस फंक्शन में आ जाऊँगी। जब वह घर लौटी तभी मैं आई। " श्रीमती सिन्हा ने कहा! यह बताते समय उनके चेहरे पर एक आत्मसंतुष्टि का भाव, एक सुक़ून ,एक तेज था। और श्रीमती शर्मा के चेहरे पर एक  बनावटी, हारी हुई, खिसियाई हुई शर्मिंदा हँसी थी। 

स्टेज पर महिला का भाषण अंतिम चरण पर था, "जिस दिन हम महिलाएँ, महिलाओं का दर्द समझ लेंगीं वही दिन हमारी उन्नति की ओर हमारा पहला क़दम होगा…"

-0-



Sunday 5 April 2020

दीप जलाएँ -ताँका



1.
दीप जलाएँ
एकजुट होकर
तम भगाएँ
हम भारतवासी
एकमत हो जाएँ!

2.
दीप जलेंगे
जब हर घर में
गूँजेंगे मंत्र
शुभ होगी प्रार्थना
शुद्ध वातावरण!

       ~अनिता ललित
 

Sunday 22 March 2020

कुछ पल जो मिले -ये नेमत हैं!

भाग-दौड़भरी ज़िन्दगी में
सब पाने की जद्दोजहद में,
इंसां अपनों को भूल गया,
अपने क्या! ख़ुद को ही भूल गया,
प्रकृति को याद कहाँ रखता!
उसकी चाहत थी दीवानी,
क़ुदरत से की फिर मनमानी!
बरसों जीने का ख़्वाब लिए
लम्हों की क़ीमत भूल गया!
अब क़ुदरत ने भी ठानी है!
अपनी मर्ज़ी बतलानी है!

इंसां ने भी ये जान लिया -
दुनिया का क्या! वो फ़ानी है!
अपनों से प्रीत निभानी है!
कुछ पल जो मिले -
ये नेमत हैं!
पलकों पर इनको हम रख लें!
अपनों के नेह के साये में
आओ! इन लम्हों में जी लें!
जीवन में गर कुछ पाना है,
तो स्वयं के भीतर जाना है,
अपनों का साथ निभाना है,
अपनेआप को पाना है!

                   ~अनिता ललित
  


फ़ोटो: अनिता ललित

Saturday 24 August 2019

तुम ही हो पतवार कान्हा !


जब-जब फैला है तमसतब-तब किया उजास
अपनों का जमघटमगरहो इक तुम ही पास
हो इक तुम ही पासन दूजा और सहारा
तुम ही हो पतवारबही जब आँसू-धारा
मन कलुषित की हारनयन में नेह लबाबब
धडकन बनी तरंगमगन कान्हा में दिल जब !!

चित्र:गूगल

                                                              

Tuesday 16 July 2019

"सारस्वत सम्मान" -15 जुलाई 2019 ~कुछ आशीर्वाद यूँ भी मिला करते हैं!


कुछ आशीर्वाद यूँ भी मिला करते हैं ~

“दिनांक 15 जुलाई, 2019, विभिन्न सम्मानों एवं पुरस्कारों से विभूषितसाहित्य शिरोमणि संपादकाचार्य स्व. डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के जन्मदिन के अवसर पर ‘साहित्यकार सुस्मृति संस्थान’ लखनऊ, तथा ‘डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव साहित्य शोध संस्थान’ लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘सारस्वत समारोह’  उत्तर-प्रदेश प्रेस क्लब’ में सम्पन्न हुआ! इसमें डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर वृहद चर्चा हुई! कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे -डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित, विशिष्ट अतिथि थे -डॉ. लाल जी सहाय श्रीवास्तव!


        इस अवसर पर साहित्यकार श्रीमती अनिता ललित को ‘सारस्वत सम्मान’ से सम्मानित किया गया! उन्होंने डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव से मिलने के अवसर का ज़िक्र करते हुए, उनके सादगी भरे जीवन तथा सीधे, सरल एवं शालीन व्यक्तित्व की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उनके कुछ हाइकु का वाचन किया! श्रीमती अनिता ललित ने कहा कि जो व्यक्ति कभी अपने गाँव की मिटटी को नहीं भूलाअपने घर की दहलीज़ को नहीं भूलाअपनी माँ के संघर्षों को नहीं भूलामाँ के बताये हर संस्कारआचार-विचार को आभूषणों की तरह धारण करके अपने व्यक्तित्त्व को सजाता गयासँवारता गयानिखारता गया ... उस व्यक्ति को झूठा अहं और इस दुनिया के दिखावे-छलावे कभी छू भी नहीं सकते थे! अपने सरल स्वभाव एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से वे सदैव अमर रहेंगे!

श्री अमरेन्द्र पाल, जो कार्यक्रम के प्रमुख वार्ताकार थे, ने डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के जीवन की कुछ घटनाओं का वर्णन किया और उनके साथ अपने अनुभव साझा किये!
डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित, डॉ. लाल जी सहाय श्रीवास्तव, श्री देवकी नंदन ‘शांत’,  तथा अन्य साहित्यकारों ने भी डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव की रचनाओं का वाचन किया एवं उनके साथ के अपने संस्मरण बताए!
श्री वाहिद ने अपने मुक्तक पाठ से सबका मन मोह लिया!
श्री देवकी नन्दन ‘शांत’ के नवगीत’संग्रह ‘नवता’ का लोकार्पण हुआ!


    कार्यक्रम व ‘साहित्यकार सुस्मृति संस्थान’ के अध्यक्ष डॉ. किशोरी शरण शर्मा, महासचिव श्री देवकी नंदन ‘शांत’ एवं टीम, ‘डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव साहित्यकार शोध संस्थान’ के अध्यक्ष तथा डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के सुपुत्र श्री विनय श्रीवास्तव एवं उनकी पत्नी श्रीमती रेखा श्रीवास्तव, सचिव तथा डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव की सुपुत्री श्रीमती प्रीति कीर्ति एवं अन्य परिवारजन तथा कई प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं पत्रकारों की उपस्थति में कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ!”