मसरूफियतों ने.. ज़िंदगी के....उलझाए तार तार,
कभी किया पार ...कभी किया तार-तार..!
उठाए नहीं उठते अब क़दमों के भार....,
ए काश ! मिल जाते... कुछ पल सुक़ून उधार...,
मिल लेते हम भी खुद से... मायूसियों के पार..,
पा लेते उस खुदा को....देता जो हमें "तार''...!!!