Wednesday, 30 May 2012

ये कैसी मसरूफ़ियत... ???

मसरूफियतों ने.. ज़िंदगी के....उलझाए तार तार,
कभी किया पार ...कभी किया तार-तार..!
उठाए नहीं उठते अब क़दमों के भार....,
ए काश ! मिल जाते... कुछ पल सुक़ून उधार...,
मिल लेते हम भी खुद से... मायूसियों के पार..,
पा लेते उस खुदा को....देता जो हमें "तार''...!!!

Tuesday, 29 May 2012

उदासी.....


दबे पाँव आती है, दिल में उतर जाती है.. !
आँखों की महकती डगर... बियाबान कर जाती है... !
होठों से मुस्कान.., जिस्म से जान छीन ले जाती है....!
दिल को बनाकर गुलाम अपना.....
हुक़ूमत उसपर चलाती है !
बिन बुलाए मेहमान सी.....
क्यूँ आई..., किधर से आई..., क्यूँ रौब मुझे दिखाती है... ?
मेरे ही घर में घुसकर...कितना ये इतराती है...?
ज़ंजीरों में जकड़ मुझे.....
क्यूँ  बेबस, लाचार, बेज़ार कर जाती है... ?
ये  '' उदासी ''......
क्यूँ  अपने रंग में रंग कर मुझे......
उदास.....बहुत  उदास... कर जाती है........???

Saturday, 26 May 2012

सुनो कभी खामोशी की कहानी....खामोशी की ज़ुबानी.....


सुनो कभी खामोशी की कहानी...


दर्द लिख जाता.. खूबसूरत सी रुबाई...आँखों में...
अश्कों की रवानी...तैरते खुश्क़ सपनों की ज़ुबानी...!
सुनो कभी खामोशी की कहानी..!


चाँदनी लजाती, बिखरती.. गुम जाए...सूनी सियाह रात में..
क़तरा क़तरा चाँद से पिघले...हो जाती शबनम बेमानी..!
सुनो खामोशी की कहानी..!


ख्वाहिशों की क़तार बहकती...भटक जाए....राह-ए-जुनूँ में..
सेहरा में रिसते छाले...हो जाती मोहब्बत पानी पानी..!
सुनो कभी खामोशी की कहानी..!


रूह आज़ाद महकतीं... गुनगुनाए ...ठंडे जिस्म में... 
धड़क उठते..दहकते शोले...खिल जाती.. ज़िंदगी की वीरानी..!
सुनो कभी खामोशी की कहानी.....!!!

Thursday, 24 May 2012

ज़िंदगी...एक कविता...


कुछ हंसते, कुछ गमगीन लम्हे....लपेट कर चलती है ये ज़िंदगी..!
कभी सातवें आसमान पर खिलखिलाती... 
तो कभी किसी गढ़े में सहमी सी...अक्सर मिलती है ये ज़िंदगी..!
समय बढ़ता जाता है.....
मगर कभी-कभी थक कर.. थम जाती है ये ज़िंदगी...!
कभी सुक़ून-ओ-चैन के संग...
कभी विरोधाभास में... जीती है ये ज़िंदगी..!
दिल में उमड़ते घुमॅडते जज़्बातों के, एहसासों के रेले...
सब झेलती है... ये ज़िंदगी !
कभी हालातों का हाथ थामे...
कभी बग़ावत करती है... ये ज़िंदगी..! 


जब कभी भी छलकी... किसी कोरे काग़ज़ पर..
अपने चेहरे की सारी आडी-तिरछी लकीरें खींचकर...
अपना नाम लिख जाती है...ये ज़िंदगी.....


दुनिया उसे कविता समझकर पढ़ती है...
मैं बस जीती जाती हूँ ...वो ज़िंदगी..!

Wednesday, 23 May 2012

*** आँसू और मुस्कान... "अनूठा गठबंधन" ***


बोली 'मुस्कान' 'आँसू' से, एक दिन आकर..,
क्यों आते हो तुम...'अँखियों' में..'भर भर'...?
होकर मजबूर....मैं जाती हूँ...बिखर...!


बोला आँसू..., तुम आओ जो 'खिल खिल' कर...,
मैं भी तो हो जाऊँ .....'बेघर'...
दया तुम्हें ....क्यों न आए मुझपर...?
'दुख' की गगरी 'संग' मेरे...जब 'नैनों' में 'भर भर' आती...
मेरे घर भी उस पल हर सू....बहारें ही बहारें छातीं...,
लेकिन.. जैसे ही चौखट पर..., दबे पाँव से...'तुम' आतीं...,
'देख' के 'तुमको'...'झूम' ही जाती..., 'दुनिया' मुझको 'भूल' ही जाती...!
दुनिया में...'सबको' तुम 'प्यारी' , 'अदा' तुम्हारी सबसे 'न्यारी' ,
'ओढ़ा' तुम्हारी 'चादर' मुझको... ज़ालिम ! 'साँसें' ही 'रोक ले' मेरी...!


उलझे 'दोनो' आपस में..., हुई खट्टी मीठी तक़रार...,
फिर 'मिल' बैठे.., लगे सोचने...होता ऐसा आख़िर 'क्योंकर...?
'दोनों' 'जज़्बातों' के 'बस' में...,फिर 'दुश्मनी' क्यों 'आपस' में...?
देख 'नम' 'मुस्कान' की आँखें... , 'आँसू' हौले से 'मुस्काया'....,
दोनों के शिक़वों का उसको....'राज़' अब समझ में आया...!


थाम हाथ मुस्कान का...आँसू फिर उस से बोला....
'अँखियों' में, जब 'मैं' '... 'भर भर' आता... मुझमें 'वजूद तेरा मुस्काता'...!
जब भी तुम 'लब' पर 'लहराती'....., 'अँखियों' से 'मैं बह-बह जाता'...
तुम 'मेरी'.... मैं 'तेरा'...दोनो 'हम'...,
'एक-दूजे' के... 'पूरक'... बनते हम...!
गर 'तुम' ना हो... 'क्या हस्ती मेरी'...,
जो 'मैं' नहीं... 'क्या क़दर तुम्हारी'...?'


दुनिया' क्या जाने...'साथ निभाना'...ये ठहरी 'बेईमान'...,
'ग़र्ज़-परस्त' , 'मतलबी'... यहाँ के...सारे हैं 'इंसान'...!
अपने 'अंधे' जज़्बातों में... हुमको 'लाठ' बनाए है...,
कभी 'सजाए'..., कभी 'बहाए'...., जी भर हमे 'नचाए' है..!
जज़्बातों के.. 'गुलाम' सही 'हम'..., मगर 'अधूरे'..'अलग' 'अलग'...'हम' ..,
अपना तो है....'अनूठा बंधन'.....
ये है......''जन्मों का गठबंधन".....!!!

Thursday, 17 May 2012

ज़िंदगी ~~ फूलों की ज़ंजीर ....




ज़िंदगी... बेतरतीब, बेलक़ीर..,
मोह्पाश...फूलों की ज़ंजीर..!


बाँधे फूल से कोमल रिश्ते ~
बेताब मन को...
महकाते, बहलाते..,
बहकाते...उलझाते..!


ज़ंजीर बनते...चुभते ~
नुकीले काँटों से हालात...,
बेरहम ! करते आघात...,
बेबस हो जाते जज़्बात...!


ज़ख़्मी रूह सिसकती...,
साँसें टूटने को बिलखतीं...! ~~


हस्ती  हो जाती लाचार..,
पंछी उड़ने को बेक़रार...!
अपने बुने जाल में बंद..
काटे गिन गिन के दिन चार.....

Wednesday, 16 May 2012

कैसी ये ज़िंदगी....




जलती बुझती.. यादों की... रातों जैसी...
जिंदगी....,
उड़ती गिरती... पर कटे परिंदे के... कुलाँचों जैसी...
जिंदगी....,
डूबती उतराती... चश्म-ए-नम में... तैरते ख्वाबों जैसी... 
जिंदगी...
थक गयी..., थम गयी.., दौड़ते दौड़ते.... 
तुम तक आते-आते.... 
मेरी...जिंदगी.......

Tuesday, 15 May 2012

बेबसी आँसू की कैसी.....




बेबसी आँसू की कैसी...
क़ैद हो जाए.. पलकों तक आकर..!
बाहर ठेले... दिल का सैलाब,
निकले तो... शर्मिंदा हो प्यार...!
पाँव की बेड़ी... तस्वीर-ए-यार.... !
कशमकश उसकी ये कैसी....
बेकल खामोशी ...ढाए क़हर...!
छुपने को... चिलमन के पीछे बेताब..,
इज़हार भी... हो जाए लाचार...!
तक़दीर उसकी ये कैसी...
बन जाए शबनम...प्यार का गौहर..!
दुशमन-ए-जाँ....अमानत-ए-यार....!!!

Monday, 14 May 2012

क्यूँ होता ऐसा कभी कभी......

क्यूँ होता ऐसा कभी कभी.....
एक शाम आती उदास सी,
कोई धुन गुनगुनाती उदास सी,
किसी की याद आती उदास सी,
एक मुस्कान लाती उदास सी,
दिल में लहर उठाती उदास सी,
आँखों से बह जाती उदास सी,
मैं मूरत बन जाती उदास सी....
क्यूँ होता ऐसा कभी कभी...

Sunday, 13 May 2012

माँ.... -- "Happy Mother's Day "




एक आँसू भी मेरा जिस से टकराता है पहले,
वो साया है आँचल का तेरे.....हर मुसीबत जो मेरी 'हर' ले !


पहुँचे मुझ तक कोई बला कैसे,
तू बन के खुदा.., रोक लेती है उसे! 


मैं क़र्ज़ तेरा.., न चुका पाऊँगी कभी,
बिन तेरे... जी ही न पाऊँगी कभी !


मेरी हर खुशी है तेरा करम...,
बसे एक दूजे की.. दुआओं में हैं हम ! 


तेरे दिल में समाई... जब मैं ही मैं..,
दे दे अपने दर्द..., हूँ हक़दार भी मैं...!


हूँ दूर ....पर हमेशा हूँ संग तेरे.., 
तुझसे मेरी हस्ती.., बसी दिल की धड़कन में तेरे !


तेरी नज़र में खिली.. सदा से मैं,
रहूंगी.. मर के भी ज़िंदा..., तुझी में मैं.!


अगले जनम दुनिया में गर आई....,
होगी रूह की मेरी इल्तिजा यही.....


तेरे जिस्म में धड़के दिल मेरा...
रग-रग में बहे मेरे..., लहू तेरा...!!!

Saturday, 12 May 2012

जज़्ब...मेरी रूह में...




तर-ब-तर हूँ....गम-ए-ज़िंदगी में,
सराबोर......बेबस अरमानों के समंदर में...!
कपड़ा नहीं कि निचोड़ लो, न ही प्याला..कि खंगाल लो...
भीगी हुई रेत हूँ.... एहसासों की तूफ़ानी लहर में !
क़तरा क़तरा मौत ... की अता... जो तेरे वजूद ने...
किया जज़्ब उसे ....मेरी रूह ने.....!

Thursday, 10 May 2012


मेरे दिल से तुम्हारे दिल तक...एहसासों की खुश्बू बिखरी है...
मिट सकती हैं हस्ती अपनी.. रिश्ता-ए-रूह मिट सकता नहीं....

मैं आँख में रुक न पाऊँगी....
दिल भर आए जब....
समझ लेना...मैं बसी वहाँ..!
सरगम  में टिक न पाऊँगी....
जो बहके धुन....
समझ लेना....मैं थमी वहाँ...!
मुस्कान में खिल न पाऊँगी...
बिछे ओस जहाँ....
समझ लेना...मैं सोई वहाँ.......

Wednesday, 9 May 2012







ज़िंदगी की राहों में...अचानक...
जब अंधेरे मोड़ आते हैं..,
संभल तक हम नहीं पाते....
अपने भी.. अक्सर छोड़ जाते हैं...!
आती है फिर सन्नाटे में... अंदर से कोई आवाज़....
अंधेरा सा है क्यूँ छाया ?
उदासी का ये डेरा क्यूँ ?
ये डर कैसा ? ये आँसू क्यूँ ? 
ये बेचैनी के साए क्यूँ...?
मुसाफिर हम...तो रस्ते के.....बियाबानों से डरना क्यूँ ..?
जो हर सू हों अंधेरे तो...अंधेरों से.. सहमना क्यूँ ?
बनाकर दर्द को ताक़त, मिटा कर मन से सारे डर..

बनाकर अपने दिल को दीप.., लहू ज़ख़्मों का उसमें भर...,
जलाओ आस की वो ज्योत...जो दे दे मात हर तम को..
अखंड वो ज्योत है ऐसी...उजालों से ...भरे मन को..!!!

Tuesday, 8 May 2012


ज़िंदगी के हर लम्हे को बूँद बूँद चखा हमने....
मिस्री की डली कुछ ... घुलते रहे...
कुछ नीम कसैले.....गटक गये ......