ज़िंदगी ~~ फूलों की ज़ंजीर ....
ज़िंदगी... बेतरतीब, बेलक़ीर..,
मोह्पाश...फूलों की ज़ंजीर..!
बाँधे फूल से कोमल रिश्ते ~
बेताब मन को...
महकाते, बहलाते..,
बहकाते...उलझाते..!
ज़ंजीर बनते...चुभते ~
नुकीले काँटों से हालात...,
बेरहम ! करते आघात...,
बेबस हो जाते जज़्बात...!
ज़ख़्मी रूह सिसकती...,
साँसें टूटने को बिलखतीं...! ~~
हस्ती हो जाती लाचार..,
पंछी उड़ने को बेक़रार...!
अपने बुने जाल में बंद..
काटे गिन गिन के दिन चार.....
अति सुंदर
ReplyDeleteसंजय जैन जी....आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!:)
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...वंदना जी ! :)
Delete~सादर !!!
ReplyDeleteज़ख़्मी रूह सिसकती...,
साँसें टूटने को बिलखतीं...! ~~
वाह ... बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद... सदा जी ! :)
Delete~सादर !!!
बहुत खूब
ReplyDeleteफूलों की जंजीर भी कर देती हस्ती लाचार !
ReplyDeleteजख्मी रूह , बिखरती साँसे !
मार्मिक !