मसरूफियतों ने.. ज़िंदगी के....उलझाए तार तार,
कभी किया पार ...कभी किया तार-तार..!
उठाए नहीं उठते अब क़दमों के भार....,
ए काश ! मिल जाते... कुछ पल सुक़ून उधार...,
मिल लेते हम भी खुद से... मायूसियों के पार..,
पा लेते उस खुदा को....देता जो हमें "तार''...!!!
गुल ही गुल है निगाहो मे..............तसव्वुर मे ''एक'' तू जो मुस्कुराया है खूशबू सी घुली है फिज़ा मे ..........ज़र्रे ज़र्रे मे तू ही तो नज़र आया है .......
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया प्रकृति ....इतनी खूबसूरत लाइन्स से इसे सजाने के लिए... ! :))
ReplyDeleteलाजवाब हैं ये व्यथित मन के उद्गार
ReplyDeleteशुक्रिया! अंजनी कुमार जी ! :)
Deleteबहुत खूब मैम!
ReplyDeleteसादर
बहुत शुक्रिया! यशवंत माथुर जी ! :)
Deleteफुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद....संजय भास्कर जी !:-)
Deleteजी ज़रूर आएँगे !