Monday 11 February 2013

**~मेरी दुनिया....~क्षणिकाएँ ~**



कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
मेरी कोई  दुनिया ही कहाँ....???


 न चाहत, न ही कोई तमन्ना...
बाक़ी अब इस ज़िंदगी में मेरी...,
तू सरमाया, तेरा हाथ, तेरा साथ...
बस यही दुनिया मेरी.....

14 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत, समर्पण का एहसास.

    रामराम.

    ReplyDelete
  2. कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
    सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
    तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
    मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....???
    लाजवाब |बहुत सुन्दर |

    ReplyDelete
  3. wahh... Bahut behtrren..
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

    ReplyDelete
  4. बाहों का दारा हो तो तमाम दुनिया सिमट आती है .... बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  5. कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
    सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
    तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
    मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....?

    सही कहा आपने , इसके बाद भी कुछ बच जाता है क्या?

    ReplyDelete
  6. जिनकी दुनिया दो बाँहों में सिमटी , बाकी से उन्हें क्या !
    सुन्दर !

    ReplyDelete
  7. क्या बात है ... छोटी सी दुनिया..छोटी-छोटी खुशियाँ
    खूबसूरत लम्हों को शब्दों में सजाकर प्रस्तुत करती रचना!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर क्षणिकाएं .

    ReplyDelete

  9. बहुत सुन्दर भाव कणिकाएं राग रंग की .

    ReplyDelete
  10. कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
    सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ..
    वाह ... बहुत खूब कहा आपने इन पंक्तियों में

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

    ReplyDelete
  12. तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
    मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....???प्रेम का सुंदर रंग----
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  13. आप सभी गुणी जनों का प्रोत्साहन सिर आँखों पर !
    हार्दिक धन्यवाद व आभार!!! :-)
    ~सादर!!!

    ReplyDelete
  14. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete