* ये कैसा सावन.... *
खिलखिलाती, मुस्कुराती बहारें...,
वो सावन की पुलकित बौछारें...!
भिगो जाती थीं तन मन को जो...
कहाँ गुम गयीं वो.....
रिमझिम रुनझुन फुहारें....?
बनकर परछाईं...आज भी दिल में....
बरसता है वो सावन.....!
भीगता नहीं मगर अब.... सूखा मन...!
फिर क्यूँ... कहाँ से... कैसे.....
महक उठे......
आँखों में..... ये सोंधापन....???
बहुत खूब मैम!
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत जी !:-)
Delete