Friday, 16 October 2015

~** सूना आशियाना **~ १०० वीं पोस्ट

किस क़दर सूना हो जाता होगा 
उस चिड़िया का आशियाना …  
उड़ जाते होंगे जब 
उसके नन्हें-नन्हें बच्चे ,
अपने छोटे-छोटे पंख पसारकर ,
किसी नई दुनिया की ओर, 
अपनी नई पहचान बनाने।
शायद तभी …
बुनती है वह, एक बार फिर,
एक नया नीड़ !
और नहीं लौटती
उस घर में अपने … 
कि गूँजती रहती हैं उसमें, 
यादों की मासूम किलकारियाँ …
रीता हो जाने के बाद … और भी ज़्यादा …
बेपनाह, बेहिसाब … 
दिल को चीरती हुई।

और चलता रहता है ...
यही क्रम सिलसिलेवार। 
बनना, बिगड़ना, टूटना, फिर बनना …
कि थकती नहीं वह !
टूटती नहीं वह !
सहते-सहते यह दर्द !
काश! सीख पाते हम इंसाँ भी !
इस दर्द के इक क़तरे को भी,  
दिल में उतारने का हुनर । 
सहते-सहते पीने,... 
पीते-पीते गुनगुनाने का फ़न !