Tuesday, 21 January 2014

**~बादलों की आँखें ~**


Photo: Anita Lalit



गरजे मेघ,
सूरज भागा, छिपा 
दूसरे देश।

चीखे बादल, 
थर-थर काँपती 
भोर है आई। 

धरा है भीगी,
बादलों की आँखें भी 
हुई हैं गीली।  

मन  है रोया 
ग़रीबी की आड़ में 
मानव खोया। 

देखो ठिठुरी 
ग़रीब की झोंपड़ी 
जमी, पिघली। 

14 comments:

  1. बहुत प्रभावी हाइकु....

    ReplyDelete
  2. क्या बात है ....अब पता चला ?

    समझ गया
    क्यों था सूरज भागा
    तू मेघ लाया..... :-)))) बधाई |

    ReplyDelete
  3. मनमोहक और सुंदर चित्रमय हायकू |

    ReplyDelete
  4. vakai..bada beimaan mausam hai aaj!

    ReplyDelete
  5. waah.....ek se badhkar ek :)

    ReplyDelete
  6. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ! :)
    ~सादर

    ReplyDelete
  7. मन है रोया
    ग़रीबी की आड़ में
    मानव खोया।

    भाव पूर्ण हाइकु अनीता जी ...मार्मिक ....!!

    ReplyDelete
  8. उम्दा हाईकु!! अच्छे लगे! हिन्दी चेतना या शायद किसी पत्रिका में आपकी कवितायें पढ़ने का आनन्द भी लिया - बधाई

    ReplyDelete
  9. सभी हाइकु बहुत उम्दा और भावपूर्ण, बधाई.

    ReplyDelete
  10. एक से बढ़ एक खूबसूरत हाइकु
    हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  11. धरा भीगी कि बादलों की आँखें गीली !
    अच्छे बिम्ब !

    ReplyDelete
  12. सराहना व प्रोत्साहन के लिए आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार ! :)

    ~सादर

    ReplyDelete
  13. भीगी थी धरा
    सूरज का विरह
    छलक आया ।

    बेहतरीन हाइकू रचनाएं ।

    ReplyDelete