आज मातृ दिवस है! मगर इस बार माँ शारीरिक रूप में मेरे साथ नहीं है। हालाँकि सदा की तरह वह हर क्षण मेरे दिल में, मेरे बहुत-बहुत-बहुत ...बहुत क़रीब है। हर त्योहार, हर जन्मदिन के अतिरिक्त चाहे कोई भी दिन या दिवस हो, जैसे 'मित्रता दिवस', 'शिक्षक दिवस'...कोई भी दिवस हो, सबसे पहले मैं माँ से बात करती थी, उन्हें बधाई/शुभकामनाएँ देती थी, उनसे आशीर्वाद लेती थी। मगर इस बार न माँ, न ही पापा, दोनों की ही आवाज़ नहीं है मेरे साथ, बल्कि वे दोनों ईश्वर के नूर की तरह मेरे पूरे वजूद पर छाए हुए हैं, मुझे अपनी बाँहों में समेटे हुए हैं। कुछ हाइकु उन दोनों की नज़र --
नहीं मिलेगी
लम्हों में अब
माँ -सी रज़ाई।
माँ को खोया
यूँ लगता है जैसे
जीवन खोया।
कहीं भी रहो
तुम सदा हो मेरी -
अंतर्मन माँ।
असीम कष्ट
माँ! तुमने जो सहे
मुझे कचोटें।
छूट गई माँ
अब सभी दुखों से
मिली है मुक्ति।
लाड़-दुलार
माँ-पापा संग गए
नाज़-नख़रे।
मन है भारी
खो गया बचपन
दूध-कटोरी।
न रहा साया
गहरा ख़ालीपन
माँ-पापा बिन।
थी इतराती
माँ-पापा के साए में! -
बीती कहानी!
चुप हूँ खड़ी
अब हुई मैं बड़ी,
खोजे आँगन।
भूली नादानी
मायके की गलियाँ
अब बेगानी।
जहाँ भी रहें
माँ-पापा की दुआएँ
संग हैं मेरे।
नहीं मिलेगी
लम्हों में अब
माँ -सी रज़ाई।
माँ को खोया
यूँ लगता है जैसे
जीवन खोया।
कहीं भी रहो
तुम सदा हो मेरी -
अंतर्मन माँ।
असीम कष्ट
माँ! तुमने जो सहे
मुझे कचोटें।
छूट गई माँ
अब सभी दुखों से
मिली है मुक्ति।
लाड़-दुलार
माँ-पापा संग गए
नाज़-नख़रे।
मन है भारी
खो गया बचपन
दूध-कटोरी।
न रहा साया
गहरा ख़ालीपन
माँ-पापा बिन।
थी इतराती
माँ-पापा के साए में! -
बीती कहानी!
चुप हूँ खड़ी
अब हुई मैं बड़ी,
खोजे आँगन।
भूली नादानी
मायके की गलियाँ
अब बेगानी।
जहाँ भी रहें
माँ-पापा की दुआएँ
संग हैं मेरे।