Sunday, 28 August 2016

**~दोहे--अपने देते तोड़! ~**

रिश्तों की बोली लगे, कैसा जग का खेल 
मतलब से मिलते गले, भूले मन का मेल।। 

फूल कहे 'ना त्यागिये!', ये काँटों का हार 
अपनों का उपहार यह, इस जीवन का सार।। 

अपनों ने कुछ यूँ छला, छीना प्रेम-उजास 
अश्कों में बहने लगी, मन की हर इक आस।। 

सुख और दुख के वास्ते, क्या अवसर क्या मोड़
अपने ही हैं बाँधते, अपने देते तोड़।। 

मन पंछी उड़ता गगन, बाँध सकेगा कौन 
कोलाहल मिटता सदा, मुखरित हो जब मौन।। 

घायल मन, साँसें विकल, मिलता दर्द अपार
आँसू नयन समाए न, यही प्रीत-उपहार।। 

बेटी शीतल चाँदनी, है ईश्वर का नूर 
कोमल मन, निश्छल हँसी, करे अँधेरा दूर।। 

दिल में मीठी याद ले, चलती हूँ दिन-रात
चुभते काँटों की कसक, अब लगती सौग़ात।। 


Tuesday, 23 August 2016

**~मधुर तेरी तान~** --चोका

ओ मेरे कान्हा!
तू है मेरा सहारा 
पालनहारा !
तू ही खेवनहारा।
मोर मुकुट !
तेरा रूप सलोना
दिल लुभाए
हो जग उजियारा !
आँसू की धार, 
जीवन मँझधार,
बंसी की धुन 
है पतवार मेरी ! 
ये प्यारी हँसी
दुःख-दर्द निवारी। 
मेरा जीवन 
है तुझको अर्पण। 
मैं हूँ निश्चिन्त 
आ के तेरी शरण। 
मुरलीधर! 
मधुर तेरी तान!
मुझे शक्ति दो 
मेरी विपदा हरो। 
राह दिखाओ !-
सद्कर्म मेरे 
बनें पूजा-अर्चना 
तेरी भक्ति-तराना।