अपने माथे पर जो
धूप, ठण्ड , बरसात....
सबकी मार लिखे.… !
सहे ख़ामोशी से सब.....
मगर, कभी न पीछे वो हटे !
पिता ....
हार्डबाउंड कवर में.…
बंद जैसे इतिहास मिले !
ढलती साँझ में जैसे...
एक दीया हो रौशन !
जिसके आने से, घर में
आ जाए रौनक …!
ख़ामोश दीवारें फुसफुसाएँ ,
कोना-कोना महके, बस जाए।
बिखरा घर हो जाए संयत….
हर चीज़ सही जगह पर आए
पिता की रौबीली आवाज़....
जब घर की देहरी पर गूँजे !
चिलचिलाती धूप में
जैसे, सुक़ून की ठण्डी छाया...!
हर मुसीबत में सम्बल वो,
अव्यक्त प्रेम का समन्दर वो ,
हर मुश्किल का हल है वो !
पिता .... कवच है पूरे घर का.…
महफ़ूज़ जिसमें... उसकी औलाद रहे..!
बच्चे की आँखों में पलते सपनों को
एक विस्तृत आकाश दे ।
पिता... टूटते तारे में हो....
मुक़म्मल हर ख्वाहिश जैसे...!
दुनियादारी की... टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर .....
अनुशासन का पाठ पढ़ाए...!
पिता...उँगली थामे, चलना सिखाए ...
और ....दुनिया की पहचान लिखे !
है जन्मदाता, है पालनहार,
हर जीवन का है आधार !
रातों को जो जाग-जागकर..
नींदें अपनी देता वार ,
वो पिता है ! उसका जीवन...
है हर बच्चे पर उधार !
पिता ... मान, अभिमान है ...
वो वरदान , सम्मान है,
घर की शान, माँ की मुस्कान है,
पिता....धरती पर सृष्टि का आह्वान है।
कली से फूल, फूल से फल.....
क्यों ... ये सफ़र कभी न याद रहे ?
हाथों से छूटे... जैसे ही हाथ.…
बस .... वक़्त औ उम्र मात मिले … !
इन उम्रदराज़ आँखों में अब …
क्यों भीगे अपमान मिले ?
क्यों बेबसी बेहिसाब मिले ?
पिता की आँखों में कभी झाँककर तो देखो
इन आँखों में...
दफ़्न कई ख़्वाब मिले ....!!!