Friday 10 May 2013

**~ऊन के गोले जैसी.... "माँ " ~**



                          सतरंगी ऊन के गोले जैसी ...
                          नर्म, मुलायम ..प्रेम-पगी ...,
                        समेटे सब को , लिपटाए खुद में,
                        कोमल स्पर्श...सहलाती माँ !

                          सहनशीलता और धैर्य की...
                          नुकीली तेज़ सलाईयों पर...
                        एक-एक क़दम बढाती हुई ...
                       सपने बच्चों के बुनती माँ !

                       सीधा-उल्टा , उल्टा-सीधा ..
                      कभी सीधा-सीधा, उल्टा-उल्टा...,
                      रातों को भी जाग-जाग कर ...
                     उँगली, कमर... कस, चलती माँ !

                    चुस्त हाथ ... बारीक़ नज़र से...
                  सपनों का आकार... सजाती माँ !
                     गिरा फंदा उठाने ख़ातिर ...
                  कभी उल्टे पाँव भी चलती माँ !
                        गाँठ ग़र आती  ...
                 उधेड़ बुनाई ... नये सिरे से ...
                   फिर सपने चढ़ाती माँ !

               प्यार, दुलार ,सेवा ,ममता ...
               अनुशासन के हर पल्ले पर ...,
               जैसे जैसे जीवन बढ़ता ...
                 जोड़-घटाने करती माँ !

                 समय बढ़ता, बढ़ते बच्चे ,
                 सपनों का भी रंग निखरता !
                नेह-धागे से पिरो... सँवारती ...
               बच्चों का तन-मन भरमाती माँ !

                रहे ना कोई सपना अधूरा..
               बुरी नज़र ना लगे किसी की ...,
              आख़िरी टाँका चूम होठों से....
             अपने दाँतों से काटती माँ !

              यूँ हर पल.. बढ़ते सपने उसके ...
             निकल हाथों से ... होते साकार !

              वो निहारती ,वो इतराती,
             बाँहों में उनको भरना चाहती ...!
       अफ़सोस मगर ! वो भूल ही जाती ...
         'सपने बुनते-बुनते गुम गया ...
        ऊन का तो वजूद ही घुल गया ...!'
        रह गयी बनकर एक धागा पतला ...
           बंद डिब्बे में... सिकुड़ा -सिमटा ...!

       उत्साह...पर उसका... न हल्का होता... 
       निग़ाह सपनों से कभी ना हटती !
        जब भी होता ... कोई सपना आहत ....
          धागे से मलहम बन जाती ...
      टूटा सपना फिर-फिर  ...जोड़ती ...!
     बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !

          सपनों में अपना जीवन बुन कर ....
        दुआ बन सदा महकती  माँ ...!

36 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर.....
    रहे ना कोई सपना अधूरा..
    बुरी नज़र ना लगे किसी की ...,
    आख़िरी टाँका चूम होठों से....
    अपने दाँतों से काटती माँ !
    शुभकामनाएं अनिता....
    सस्नेह
    अनु

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  2. सहनशीलता और धैर्य की...
    नुकीली तेज़ सलाईयों पर...
    एक-एक क़दम बढाती हुई ...
    सपने बच्चों के बुनती माँ !
    VERY TRUE

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  3. ma ki zindgi ka ak sahi dastavez, marmsparshi

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  4. सपनों में अपना जीवन बुन कर ....
    दुआ बन सदा महकती माँ ... सच
    माँ तो माँ है माँ के जैसा कोई नहीं ....

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  5. माँ का हृदय सागर से भी विशाल और गहरा होता है । ऐसी मार्मिक रचना अनुभूति की आँच से पककर निकले तो समझो वह हृदय भी माँ का ही है।आपकी यह कविता दिल को छू गई । अनिता जी बहुत बधाई !ये पक्तिया सचमुच में मर्मस्पर्शी हैं -रहे ना कोई सपना अधूरा..
    बुरी नज़र ना लगे किसी की ...,
    आख़िरी टाँका चूम होठों से....
    अपने दाँतों से काटती माँ !

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  6. रहे ना कोई सपना अधूरा..
    बुरी नज़र ना लगे किसी की ...,
    आख़िरी टाँका चूम होठों से....
    अपने दाँतों से काटती माँ !

    मां जीती जागती इंसान होते हुये भी एक ऐसा कोमल मधुर एहसास है जिसे हर व्यक्ति महसूस करता है. इस मां रूपी एहसास को शब्दों में अभिब्यक्त करने की एक खूबसूरत कोशीश, बहुत ही हृदयस्पर्षि भाव, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. बहुत ही अच्छी कविता |

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  8. बहुत सुंदर रचना ..... माँ के लिए यह बिम्ब बहुत सुंदर लगा ।

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  9. उत्साह...पर उसका... न हल्का होता...
    निग़ाह सपनों से कभी ना हटती !
    जब भी होता ... कोई सपना आहत ....
    धागे से मलहम बन जाती ...
    टूटा सपना फिर-फिर ...जोड़ती ...!
    बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !

    सपनों में अपना जीवन बुन कर ....
    दुआ बन सदा महकती माँ ...!

    हम सब अपनी माँ से वो सब कुछ पते हैं जिसे हम मन में एक बार सोच लेते हैं

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  10. bahut sundar,,,, Maa Jaisa koi nhi ....
    सपनों में अपना जीवन बुन कर ....
    दुआ बन सदा महकती माँ ...!

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  11. आप सभी गुणी जनों के स्नेहयुक्त प्रोत्साहन का हार्दिक धन्यवाद व आभार !:-)
    ~सादर!!!

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  12. आपका आभार वंदना जी !
    ~सादर!!!

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  13. टूटा सपना फिर-फिर ...जोड़ती ...!
    बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !.........बहुत सुन्दर

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  14. माँ को श्रद्धेय नमन।

    सादर

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  15. सहनशीलता और धैर्य की...
    नुकीली तेज़ सलाईयों पर...
    एक-एक क़दम बढाती हुई ...
    सपने बच्चों के बुनती माँ !



    waah ....

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  16. प्यार, दुलार ,सेवा ,ममता ...
    अनुशासन के हर पल्ले पर ...,
    जैसे जैसे जीवन बढ़ता ...
    जोड़-घटाने करती माँ !..

    माँ किसी कुम्हार की तरह कच्चे घड़े को आकार देती है ... जीवन सवारती है ...

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  17. सुन्दर बिम्ब । भावपूर्ण कविता ।

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  18. क्या कहूँ ....अनीता!
    बहुत सारा स्नेह !

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  19. बहुत सुन्दर नीतू...माँ पर पढ़ी ...चुनिन्दा कविताओं में से एक ....बहुत सुन्दर बिम्ब...

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  20. जबसे चली गयी है वो,
    हर लम्हा याद आती माँ!!
    आशीष
    --
    थर्टीन एक्सप्रेशंस ऑफ़ लव!!!

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  21. उत्साह...पर उसका... न हल्का होता...
    निग़ाह सपनों से कभी ना हटती !
    जब भी होता ... कोई सपना आहत ....
    धागे से मलहम बन जाती ...
    टूटा सपना फिर-फिर ...जोड़ती ...!
    बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !
    ईश्वर के बाद माँ की ही स्तुति की जाती है इतनी .बढ़िया भाव उदगार .

    उत्साह...पर उसका... न हल्का होता...
    निग़ाह सपनों से कभी ना हटती !
    जब भी होता ... कोई सपना आहत ....
    धागे से मलहम बन जाती ...
    टूटा सपना फिर-फिर ...जोड़ती ...!
    बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !

    माँ शिव की मानिंद गुण वाचक नाम है जो सदा बच्चों की निगरानी रखती ,जेड सिक्युरिटी देती है ताउम्र .बढ़िया पोस्ट .परफेक्शन चाहती माँ को समर्पित .

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  22. चुस्त हाथ ... बारीक़ नज़र से...
    सपनों का आकार... सजाती माँ !
    गिरा फंदा उठाने ख़ातिर ...
    कभी उल्टे पाँव भी चलती माँ !
    गाँठ ग़र आती ...
    उधेड़ बुनाई ... नये सिरे से ...
    फिर सपने चढ़ाती माँ !--------
    क्या गूँथ दिया है माँ को आपने जीवन में
    अदभुत भावपूर्ण रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों "उम्मीद तो हरी है"
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  23. आप सभी के प्रोत्साहन भरे शब्दों का हार्दिक धन्यवाद व आभार !:-)
    ~सादर!!!

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  24. सपने बुनना और उन्हें सहेजना माँ ही सिखाती है. भावमयी प्रस्तुति मात्र दिवस पर.

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  25. अफ़सोस मगर ! वो भूल ही जाती ...
    'सपने बुनते-बुनते गुम गया ...
    ऊन का तो वजूद ही घुल गया ...!'
    रह गयी बनकर एक धागा पतला ...
    बंद डिब्बे में... सिकुड़ा -सिमटा ...!

    bahut khoob likha hai apne .....badhai Anita ji

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    1. सुंदर पंक्तिया
      कृपया अपने विचार शेयर करें।
      http://authorehsaas.blogspot.in/
      कृपया अपने विचार शेयर करें।

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  26. जब भी होता ... कोई सपना आहत ....
    धागे से मलहम बन जाती ...
    टूटा सपना फिर-फिर ...जोड़ती ...!
    बिन पैबंद ...बस.. मुस्काती माँ !

    ...मन को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर..

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  27. मर्मस्पर्शी रचना भावों को सहलाती दुलराती माँ की लोरी सी ....शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .

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  28. बहुत भावपूर्ण रचना!!

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  29. ek bahut bahut khoobsurat rachna...ek khoobsurat vayktitva ke liye...!!

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  30. बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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  31. सराहना व प्रोत्साहन के लिए आप सभी का दिल से आभार..!:-)
    ~सादर!!!

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  32. बहुत सुंदर मातृवंदना.... धन्यवाद---

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  33. मर्मस्पर्शी कविता :)

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